Baba Ramdev Temple in Sujandeshar Bikaner
बाबा रामदेवजी मंदिर सुजानदेसर बीकानेर का इतिहास और विशेषताएँ
सुजानदेसर के बाबा रामदेवजी के मंदिर का इतिहास
सुजानदेसर के बाबा रामदेवजी के मंदिर का इतिहास एक भक्त और भगवान के अद्भुत मिलन से शुरू होता है। इस मंदिर के इतिहास की नींव एक भक्त से शुरू होती है जिसे स्वयं श्री बाबा रामदेवजी ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन दिए थे। बाबा रामदेवजी ने भक्त को वरदान स्वरूप यह आशीर्वाद दिया कि जिस किसी भक्त की मन्नत रुणुजा जाकर मेरी समाधि पर माथा टेकने की हो परंतु किसी कारणवश वह रुणुजा नहीं जा सकता हो, वह इस सुजानदेसर के मंदिर में मेरे दर्शन कर लेगा तो उसकी मन्नत अवश्य पूर्ण होगी।
सुजानदेसर मंदिर की स्थापना
बीकानेर के प्रसिद्ध सुजानदेसर के बाबा रामदेवजी के मंदिर की स्थापना बाबा के परम भक्त संत श्री हीरानंदजी माली ने सन 1773 में की थी। इस मंदिर की स्थापना बीकानेर से एक कोस दूर सुजानदेसर में की गई, जिसके कारण इस मंदिर को कोस वाले रामदेवजी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। सुजानदेसर के रामदेवजी मंदिर की पूजा का अधिकार सिर्फ कच्छावा जाति के लोगों को है। यहाँ पर प्रतिवर्ष बाबा रामदेवजी के जन्मदिवस भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दूज को मेला लगता है, जिसमें बीकानेर के 25 किलोमीटर के दायरे से हजारों की संख्या में लोग बाबा के दर्शन करने आते हैं।
सुजानदेसर मंदिर की कहानी
सुजानदेसर के बाबा रामदेवजी मंदिर की स्थापना बीकानेर के राजा जोरावर सिंह के समय की गई थी। इस मंदिर की स्थापना की नींव एक परम भक्त और भगवान के मिलन की कहानी पर आधारित है। एक बार बीकानेर के महाराजा जोरावर सिंह ने बाबा रामदेवजी के प्रसिद्ध मंदिर रुणिचा में जाकर बाबा रामदेवजी की समाधि पर माथा टेकने और मंदिर की परिक्रमा करने की मन्नत मांगी थी, जो किसी कारणवश पूरी नहीं हो पाई। राजा की इस मन्नत का पता जब उनकी प्रजा को चला, तब उनमें से एक विद्वान ने आकर राजा को बताया कि हमारे यहाँ से एक कोस दूर बाबा रामदेवजी के एक परम भक्त संत हीरानंदजी माली आए हुए हैं। वे बाबा रामदेवजी के कपड़े के घोड़े को लेकर इधर-उधर घूमते हैं और बाबा का प्रचार करते हैं। उन्होंने बीकानेर के नजदीक ही एक छोटा सा मंदिर बनाकर बाबा रामदेवजी के भजन-कीर्तन करते हैं।
विद्वान की बातों को सुनकर राजा जोरावर सिंह हीरानंदजी के पास पहुँचकर अपनी मन्नत के बारे में बातचीत करते हैं। हीरानंदजी ने राजा को बताया कि यदि आप प्रभु में विश्वास रखते हैं, तो आप अपनी मन्नत को इस छोटे से मंदिर में पूर्ण कर सकते हैं और रुणिचा जाने का खर्च यहाँ बाबा रामदेवजी के भंडारे स्वरूप लगा सकते हैं। राजा की मन्नत पूर्ण हुई, और इस घटना के बाद हीरानंदजी ने वहां पर भक्तों की मन्नतों को पूर्ण कराते हुए एक भव्य मंदिर बनाया, जिसे आज हम सुजानदेसर के नाम से जानते हैं।
सुजानदेसर रामदेवजी के मंदिर की विशेषताएँ
सुजानदेसर मंदिर की बनावट बहुत ही सुंदर रूप से की गई है। यहाँ पर बीकानेर के आधे से भी अधिक लोग रामदेवरा न जाकर यहीं आते हैं, जिसके कारण इसे बीकानेर का रुणुजा के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इसे कोस वाले रामदेवजी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर एक 35 फीट गहरी बावड़ी है, जो कभी खाली नहीं होती है। सुजानदेसर में मंदिर से अधिक ऊंचाई वाले घर नहीं बनाए जाते हैं। यहाँ पर जो घर पुराने हैं, उनकी भी ऊंचाई अधिक नहीं है। यहाँ के लोगों का मानना है कि भक्त कभी भगवान से बड़ा नहीं हो सकता, तो निवास स्थान कैसे हो सकता है। इसी आस्था के कारण आज सुजानदेसर में रामदेवजी के मंदिर के गुंबद से ऊँचे किसी के मकान नहीं हैं और न ही कोई बनाता है।