बाबा रामदेवजी के बाल्यकाल से जुडी कहानी
भारत में अगर किसी राज्य के इतिहास की बात की जाए तो राजस्थान सबसे अग्रहणी रहेगा। राजस्थान अपनी वीरता ,त्याग तथा लोकदेवताओं के लिए प्रसिद्द है।
राजस्थान में कई लोक देवी देवताओ की पूजा आराधना की जाती है ,जिनमे से प्रमुख है ramdevji। बाबा रामदेवजी को द्वारकाधीश का अवतार कहा जाता है। ramdevji का जन्म राजस्थान के पोकरण के राजा अजमाल जी के यहां सन 1409 में भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दूज को हुआ था।
amdevji ने जन्म से ही चमत्कार देने शुरू कर दिए थे। बाबा रामदेव जी जन्म से ही शरारती थे ,उन्होंने जन्म लेते ही अपनी माता मेणादे तथा अपने पिता अजमाल जी को परचा दिया । इसी तरह जैसे जैसे रामदेवजी की उम्र बढ़ती गयी वैसे वैसे चमत्कार करते गए। जैसे :दरजी को परचा , लाख बंजारे को परचा , डाली बाई को परचा,अछूत को परचा , भैरव राक्षज को परचा ,दिन दुखियो को परचा जैसे कई चमत्कार किये।
बाबा रामदेवजी का माता मैणादे तथा पिता अजमालजी को परचा
बात उस समय की है जब अजमाल जी द्वारका धीश से वरदान प्राप्त कर अपने महल लौटते है। वरदान के अनुसार भाद्रपद मास की दूज को द्वारकाधीश स्वयं राजा अजमाल जी के घर रामदेवजी के रूप में अवतार लेते है। द्वारकाधीश राजा अजमाल जी को अपने आने का आभास कराने के लिए सारे महल में कुमकुम के पदचिन्ह ( पगलिया ) बना देते है तथा सारे महल के पानी को दूध में बदल देते है। तथा पुरे नगर में मूसलाधार बारिश भी शुरू हो जाती है जिससे सारे नगर को अकाल से मुक्ति मिल जाती है।
एक बार जब माता मैणादे रसोई में चूल्हे से दूध को उतारना भूल जाती है ,और रसोई से बहार चली जाती है। इतने में बर्तन में रखा दूध उफन जाता है , तब बाबा रामदेव जी अपने हाथ की उंगुली से बर्तन की तरफ इशारा करते है और उफनते दूध के बर्तन को चूल्हे से उतार देते है। कहा जाता है की एक बार रामदेवजी अपनी माता मैणादे को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन भी कराते है।
रामदेवजी बाल्यकाल में बहुत ही हठी थे। बाल्यकाल में वे बहुत जिद्द करते थे। एक बार बाबा ramapir के बाल्यकाल से जुडी कहानी में एक घोड़े के बछड़े को देखा तो उन्होंने घोड़े की सवारी करने की जिद्द की ,परन्तु माता को चिंता थी की कही घोडा रामदेवजी को चोट न पहुचाये।
परन्तु बाबा ramapir के बाल्यकाल से जुडी कहानी को घोड़े की सवारी करनी थी तो वे माता के पास जाकर रोने लगे । इस पर माता ने कपडे का घोडा बनाने का आदेश दिया। माता मैणादे ने राजदर्ज़ी को बुलाया और एक मुलायम कपडा देकर घोडा बनाने का आदेश दिया।
दरजी को कपडे का लोभ हो गया और घोड़े का निर्माण करने में रद्दी कपडे का उपयोग किया और बाहर अच्छा कपडा उपयोग कर घोडा बनाकर माता मैणादे को दे दिया। घोडा का निर्माण इतना सुन्दर किया गया था की वो देखते ही मन को मोह ले।
माता मैणादे ने घोडा ले जाकर ramapir को दिया। रामदेवजी को घोडा इतना पसंद आया की वो इसकी सवारी करने के लिए घोड़े पर चढ़ गए और घोड़े को लेकर आकाश में उड़ गए। ये देखकर माता मेणादे को चिंता हुई और दरजी को जादूटोना करने के अपराध में कारागृह में बंद करवा दिया।
इस पर दरजी को अपनी गलती का पश्चाताप हुआ और वो भगवान् से अपने किये की माफ़ी मांगने लगे। दरजी की प्राथना को स्वीकार कर ramapir अपने महल की परिक्रमा कर अपने माता के पास पहुंच गए। माता मैणादे ने राजदर्ज़ी को कारागृह से मुक्त करने का आदेश दिया और दरजी ने पुनः अपने कृत्य की माफ़ी मांगी।
बाबा रामदेवजी का रतना रायका की माता को पर्चा
Ramapir ने बचपन में रतना रायका की माता को भी परचा दिया। बात उस समय की है जब रतना रायका अपनी माँ से भोजन कराने को कहा तब रतना की माँ उसे भोजन कराने में असमर्थ थी , क्योकि उनके परिवार की स्थिति दो समय का भोजन जुटाने की भी नहीं थी।
तब रतना की माँ भगवान् से प्राथना करती है तब ramapir उनकी प्राथना को सुन कर उनके घर आते है और रतना को साथ ले जाने की अनुमति मांगते है। इस पर रतना की माता कहती है की हम आपके साथ भोजन नहीं कर सकते क्योकि हम निचली जाती के है आपको भी यहाँ नहीं आना चाहिए था।
इस पर ramapir कहते है कौन निचा तथा कौन ऊचा सब लोग एक सामान है। पर रतना की माँ नहीं मानती है तब रामदेव जी रतना में अपना तथा स्वयं में रतना का रूप के दर्शन करवाते है। इस पर माता रतना को ले जाने की अनुमति दे देते है और रामदेवजी अपने साथ रतना को भोजन कराते है। इससे यह पता चलता है की रामदेवजी बचपन से ही छुआ छूट की भावना के खिलाफ थे।
बाबा रामदेवजी का लाखा बंजारा को परचा
एक बार लाखा बंजारा मिश्री बेचने के लिए पोकरण गढ़ आया और मिश्री बेचने लगा। उस समय मिश्री पर लगान लगता था , जिसके कारण लाखा बंजारा कोई लगान मांगने आता तो वो नमक कहकर लगान की चोरी करता।
एक दिन रामदेवजी नगर में भ्रमण कर रहे थे तब रामदेवजी ने बंजारे से पूछा मिश्री का लगान दिया या नहीं। बंजारा लगान को बचाने के लिए रामदेवजी से झूठ बोलता है और कहता की यह मिश्री नहीं नमक है। यह सुनकर रामदेवजी वह से हसकर चले जाते है। पीछे बंजारा मिश्री बेचने के लिए जैसे ही मिश्री लोगो को चखवाता है तब तक वो मिश्री नमक बन जाती है।
बंजारे की सारी मिश्री की बोरिया नमक में बदल जाती है। इस पर बंजारे को अपनी भूल है पश्चाताप होता है और वो रामदेवजी के पैरो में आकर माफ़ी मांगने लगता है । ramapir ने बंजारे की माफ़ी स्वीकार कर चेतावनी देकर छोड़ देते है। माफ़ी पाकर बंजारा पुनः अपनी बोरिया देखता है तो पता है की सारा नमक मिश्री बन जाता है। ये देखकर सभी नगर वासीramapir की जयकार करने लगते है।
बाबा रामदेवजी का डाली बाई को परचा
डाली बाई को परचा रामदेवजी ने बचपन में डाली के मिलने पर दिया था। बात उस समय की है जब ramsapeer अपने भाई वीरमदेव के साथ वन में भ्रमण कर रहे थे तभी उन्हें एक पेड़ के नीचे रोती हुई बच्ची मिली। बच्ची लगातार रोये जा रही थी क्योकि वह भूखी थी।
बच्ची को रोता देखकर ramsapeer ने अपने हाथ का अगूंठा बच्ची के मुँह में दिया तो अंगूठे से दूध की धार निकले लगी। दूध को पीकर बच्ची की भूख मिट गयी और वो शांत हो गयी। बाबा रामदेवजी उस बच्ची को अपने महल लेकर आये और उसका नाम डाली रखा। जो आगे चलकर रामदेवजी की परम भक्त के रूप में विख्यात हुई।
बाबा रामदेवजी का भैरव राक्षज का वध
बाबा रामदेवजी की नगरी में भैरव नामक दैत्य का आतंक था। सभी नगरवासी भैरव के आतंक से भयभीत थे। भैरव जितनी बार नगर में आता तो वो लोगो को जीवित ही निगल जाता था। भैरव के इस अत्याचार से जनता को मुक्त करने के लिए ramsapeer भैरव की खोज में निकल जाते है।
खोजते खोजते बालीनाथ के आश्रम पहुंचते है और भैरव के बारे में पूछते है तभी भैरव आ जाता है। भैरव को देख बालीनाथ घबरा जाते है और ramsapeer को अपने आश्रम में एक कम्बल के नीचे छिपा देते है। भैरव वहा आता है और बालीनाथ से पूछता है की कहा छिपा रखा है मानव को क्योकि मुझे मानव की गंध आ रही है।
तभी ramsapeer के बाल्यकाल से जुडी कहानी कम्बल के अंदर से हलचल करते है और भैरव को अपनी ओर बुलाते है। ये देखकर भैरव अंदर जाकर कम्बल को खींचने लगता है ओर खींचता ही रहता है पर कंबल का कोई भी छोर नहीं मिलता है। इससे भैरव घबराकर वह से भाग जाता है।
भैरव के पीछे पीछे बाबा रामदेवजी के बाल्यकाल से जुडी कहानी भागते है ओर एक पहाड़ी पर जाकर भैरव का वध कर देते है। कई लोगो का मानना है की भैरव को ramsapeer के बाल्यकाल से जुडी कहानी ने एक पहाड़ी पर पत्थर के निचे दफ़न कर दिया था। वो स्थान आज भी पोकरण की पहाड़ियों पर है।
बाबा रामदेवजी का दीन दुखियो की सेवा
Ramsapeer बचपन से सेवाभावी थे। वे हमेशा सेवा परमो धर्म को बढ़ावा देते थे। बचपन में उन्होंने कई लोगो की सेवा की। कई प्रकार के रोगो से पीड़ित लोगो को रोग मुक्त करने में उनकी सहायता की। ramsapeer ने बचपन में ही अपने पर्चो से लोगो के कोढ़ तथा अन्धो को आखे देना जैसे कई चमत्कार किये।
विवेक व्यास